अपनी मां की गोद में बैठे इस शख्‍स की उम्र जानकर दंग रह जाएंगे आप, रेंगकर जी रहा है ज‍िंदगी

अपनी मां की गोद में बैठे इस शख्‍स की उम्र जानकर दंग रह जाएंगे आप, रेंगकर जी रहा है ज‍िंदगी

हाइलाइट्स

खिरोधर को चिंता यह सता रही कि मां बूढ़ी हो रही है. वह कब तक उसे गोद में उठा पाएगी.
पीड़ित खिरोधर प्रसाद की मां बताती हैं कि सरकार से उन्हें किसी भी तरह की मदद नहीं मिल रही है.

सुशांत सोनी
अपनी मां की गोद में बैठा यह शख्स खिरोधर प्रसाद है. 42 साल के खिरोधर का वजन सिर्फ दस किलोग्राम है और उनकी लंबाई 28 इंच है. उनके शरीर का 80 फीसदी हिस्सा काम नहीं करता और रोजमर्रा की जरूरतों के लिए वह काफी हद तक अपनी मां पर निर्भर है. खुद चलने फिरने में असमर्थ हैं, मां ही एकमात्र सहारा है. खिरोधर की कुछ आय हो जाए इसके लिए उनकी मां पार्वती देवी ने गांव में एक परचून की दुकान खोलअपनी मां की गोद में बैठा यह शख्स खिरोधर प्रसाद है. 42 साल के खिरोधर का वजन सिर्फ दस किलोग्राम है अपनी मां की गोद में बैठा यह शख्स खिरोधर प्रसाद है. 42 साल के खिरोधर का वजन सिर्फ दस किलोग्राम है  दी. इस दुकान में खिरोधर को वह रोज छोड़ जाती हैं. खिरोधर यहां दिन भर बैठे या लेटे रहते हैं. ग्राहक आते हैं और खुद सामान लेकर पैसे रखकर चले जाते हैं. मां शाम में दुकान पहुंचती हैं, उन्हें लेकर घर आती हैं. यही उनकी दिनचर्या है.

खिरोधर को चिंता यह सता रही कि मां बूढ़ी हो रही है. वह कब तक उसे गोद में उठा पाएगी. इसके अलावा मां के गुजरने के बाद उनका क्या होगा? उनका जीवन यापन कैसे हो पाएगा. मां भी परेशान है कि उनके बाद खिरोधर का क्या होगा? चार भाई-बहनों में खिरोधर दूसरे नंबर पर हैं. अन्य भाई बहन सामान्य हैं. गांव के स्कूल से प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के बाद विष्णुगढ़ इंटर कालेज से 2006 में खिरोधर ने इंटरमीडिएट उत्तीर्ण किया था. उन्हें सरकारी नौकरी की चाहत थी, जो पूरी नहीं हुई. सरकारी मदद के नाम पर उन्हें केवल एक हजार मासिक पेंशन मिल रही है.

खिरोधर कहते हैं कि नौकरी के लिए पूर्व में नेताओं से लेकर मुख्यमंत्री तक से मिल चुका हूं. सिर्फ आश्वासन मिला है. ग्रामीणों का कहना है कि खिरोधर राज्य में सबसे कम ऊंचाई के इंसान हैं. गांववालों का कहना है कि खिरधोर की गणना देश या विश्व के नाटे कद वाले इंसानों की सूची में की जानी चाहिए. इससे शायद उन्हें कुछ और मदद मिल जाती.

पीड़ित खिरोधर प्रसाद की मां बताती हैं कि सरकार से उन्हें किसी भी तरह की मदद नहीं मिल रही है. राशन कार्ड से किसी भी तरह का अनाज उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. खिरोधर बच्चों को पढ़ाने में अच्छे हैं. अगर सरकार उन्हें टीचर की नौकरी देती तो यह अपना जीवन यापन कर सकते थे. बताया कि उन्होंने खिरोधर का काफी देखभाल की है. उनके जाने के बाद आगे जाकर क्या होगा? उन्हें इसका कोई भी अंदाजा नहीं है. उनके चले जाने के बाद खिरोधर किसके सहारे होंगे यह एक बड़ा सवाल है. मां ने यह भी बताया कि खिरोधर के हौसले कम नहीं है. वह गांव में ही एक परचून की दुकान चलाते हैं साथ ही बच्चों को पढ़ाने का कार्य भी करते थे. अगर इन्हें थोड़ा भी सहायता प्रदान की जाए तो यह अपने पैर पर खड़े हो सकते हैं.

खिरोधर का शरीर 80% से ज्यादा कार्य नहीं करता है, लेकिन फिर भी इनके हौसले बुलंद दिख रहे हैं. यह अपने पैर पर खड़े होना चाहते हैं. सरकार एवं हजारीबाग जिला प्रशासन अगर इन्हें थोड़ा भी मदद करें तो यह अन्य विकलांग लोगों के लिए मिशाल पेश कर सकते हैं. साथ ही दुनिया के सबसे छोटे कद के व्यक्तियों के लिस्ट में इन्हें शामिल किया जाना चाहिए.

Tags: Hazaribagh news, Jharkhand news

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